देवभूमि के सरकारी और अर्धसरकारी विद्यालयों में सुबह प्रार्थना के समय पढ़े जाएंगे इस धार्मिक ग्रंथ के श्लोक

देहरादून: प्रदेश के सरकारी और अशासकीय विद्यालयों में आज से प्रार्थना सभा एक नई रौशनी लेकर आई है। अब हर सुबह प्रार्थना के समय श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ न सिर्फ सुनाया जाएगा…बल्कि उसका अर्थ और उससे जुड़े वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भी छात्रों को विस्तार से जानकारी दी जाएगी।

माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि प्रार्थना सभा में प्रतिदिन कम से कम एक श्लोक अर्थ सहित छात्र-छात्राओं को सुनाया जाए। इसके साथ ही सप्ताह में एक दिन ‘सप्ताह का श्लोक’ तय कर उसे सूचना पट्ट पर अर्थ सहित लिखा जाए…ताकि विद्यार्थी उसका अभ्यास कर सकें। सप्ताह के अंत में उस श्लोक पर चर्चा कर छात्रों से फीडबैक भी लिया जाएगा।

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विद्यालय स्तर पर यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि गीता के श्लोक छात्रों के लिए सिर्फ एक विषय या पाठ्यक्रम की तरह न हों, बल्कि उनका प्रभाव उनके जीवन, आचरण और दृष्टिकोण में भी दिखे। इसका उद्देश्य है विद्यार्थियों के चारित्रिक विकास, आत्म-नियंत्रण, संतुलित दृष्टिकोण, व्यक्तित्व निर्माण और विज्ञान सम्मत सोच के साथ-साथ उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाना।

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर श्रीमद्भगवद् गीता और रामायण को राज्य की पाठ्यचर्या की रुपरेखा में भी शामिल कर लिया गया है। शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती के अनुसार, राज्य पाठ्यचर्या की सिफारिश के आधार पर अगले शिक्षा सत्र से नई पाठ्यपुस्तकें लागू करने की योजना बनाई गई है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान परंपरा और उसकी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से परिचित कराना जरूरी है। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए छह मई को मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा से अवगत कराया गया था। इस दौरान मुख्यमंत्री ने गीता और रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल करने के स्पष्ट निर्देश दिए।

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डॉ. सती ने कहा कि गीता सिर्फ धार्मिक ग्रंथ नहीं है…बल्कि यह मानव जीवन के विज्ञान, मनोविज्ञान और व्यवहार शास्त्र का ऐसा संकलन है, जिसमें कर्तव्यनिष्ठा, तनाव प्रबंधन, निर्णय क्षमता और विवेकपूर्ण जीवन जीने के वैज्ञानिक सूत्र निहित हैं। इस पहल के जरिए विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को बेहतर नागरिक बनाने की दिशा में एक ठोस प्रयास होगा, और श्रीमद्भगवद् गीता इस राह में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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